सोमवार, 17 मई 2010

अनुभूति

अनुभूति एक मानसिक प्रक्रिया है ,जो शरीर पर भी अनुभव की जाती है। शारीरिक अनुभूति एक सामान्य स्थिति है। शरीर में किसी तरह का वेदन ही शारीरिक अनुभव की स्थायी स्थिति की अनुभूति है। भव का अनुसरण ही अनुभव है । जो कुछ भी घटित हो रहा है ,वह भव ही है । भव एक सतत प्रक्रिया है ,जो लगातार गतिशील रहती है।संसारं का नाम संसरण के कारण ही है। भव संसार का तात्पर्य प्रत्येक पदार्थ एवं वस्तु का उत्पन्न होना, क्षण -भर रहना तथा भंगुर हो जाना ही क्षण भंगुरता अर्थात क्षण-क्षण में परिवर्तन-शील होना ही भव्-संसार है। यह क्षण-क्षण ही अनुभव के रूप में स्थिर रहता है। इसे ही स्थायी रूप में अनुभूति के रूप में सम्बोधित किया जाता है। मानसिक रूप में अनुभूति राग एवं द्वेष के स्वरूप को रूपायित करती है। प्रारम्भ में राग सुख का कारण बनता है और द्वेष दु:ख का कारण हो जाता है। रागात्मक सम्बन्ध से सुखात्मक अनुभूति होती है और द्वेष युक्त सम्बन्धों से दु :ख की अनुभूति हो जाती है। अनुभूति निर्विकार होती है। वह स्वच्छ दर्पण के समान होती है। दर्पण में जैसी छाया भासित होती है ,अनुभूति वैसी ही हो जाती है। वस्तुत: अनुभूति को अपने ज्ञान ,मन,अहंकार ,बुद्धि एवं चित्त के द्वारा संवर्धित किया जा सकता है। मेरी अनुभूति तो मेरी ही है ...........?

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